Wednesday, March 7, 2012

जिन्दगी के इस सफ़र को रंग रोचक तो बनाता है

 
"जिन्दगी के इस सफ़र को रंग रोचक तो बनाता है
साधकों की साधना का केन्द्र
बच्चों की किलकारी और पिचकारी पूछो
प्यार की बस्ती का रास्ता
होलिका की आग से रोशन हो रंग और राग तक जाता है." ---- राजीव चतुर्वेदी
" साजिशें लगाती जिस शहर में हों गुलाल ,.
उस शहर का नागरिक होने का मलाल है."
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"उनके दिल काले और हाथों में गुलाल है,
यह हादसा देख कर मुझको मलाल है."
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"ये बाज़ार के रंग तो दो दिन का तमासा हैं,
मेरे दिल पर रंग अपना चढाओ तो कोई बात बने."
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"दिल है बदरंग, दिमाग है तंग पर हाथ मै है रंग,
इन रंगरेजों के रिश्ते रूहानी नहीं जिस्मानी हैं ."
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"सुबह रंग डालो शाम को गले मिलो,
पीठ में छुरा कल भोंक लेना .
अगर इससे खुश हो तो बधाई तुम्हें,
वरना पश्चाताप के आंसू पोंछ लेना. " ----- राजीव चतुर्वेदी
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"मैं भी रंगा हुआ हूँ ज़माने के रंग में,
ऐ आईने तू ही बता मेरी असलीयत क्या है ?"----राजीव चतुर्वेदी
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"आओ मेरे यारो
रंग लगा लो
गले लगा लो
भंग जमा लो
गालों पर भी मलो गुलाल
गाली तुम बकते हो तो ऐसा लगता है
मेरा कुत्ता भौक रहा है
यों तो कौओं को भी कुदरत ने हक़ बक्शा है कुछ कहने का
जब भी बोलो इन पर्वों पर
ऐसा बोलो
चिड़िया जैसे कुहुक रही हो
और हमारी हर हरकत को
आने बाली नश्लें देख रही हैं दालानों से
हमारी तरुणाई फूलों की अंगड़ाई जैसी
और हमारा प्यार सुगंधों सा फैला है
बहने, भाभी, प्रिया हमारी प्रेम परिधि में सब आती हैं
नन्हे बेटे, छोटा भाई प्यार हमारा सब पाते हैं
प्यार हमारा फूलों जैसा इस फागुन में भी महक रहा है
और स्नेह बहनों के मुह से चिड़िया जैसा चहक रहा है
प्रह्लादों की औलादों तुम यह बतलाओ
उस होली से इस होली तक
अच्छे लोग हाशिये पर क्यों कातर से खड़े हुए हैं ?"-----राजीव चतुर्वेदी
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"जिन्दगी के रंग जब रूठे हों मुझसे,-- क्या करूँ मैं ?
रिश्ते रास्तों में कहीं छूटे हों मुझसे ,---क्या करूँ मैं ?
ओढ़ कर तनहाई अपनी सांस की शहनाई सुनता हूँ
अपने अथाही मौन को मैं तोड़ता हूँ अपनी कविता से
संविधानो की शपथ के शब्द जब झूठे हों मुझसे --क्या करूँ मैं ?
" ----राजीव चतुर्वेदी

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