Saturday, May 12, 2012

मैंने तो सूरज से शर्तें पूछी थीं



"मैंने तो सूरज से शर्तें पूछी थीं ,
इन बातों से बल्बों को क्यों रंज हुआ ?
उसकी सुन्दरता ही कुछ ऐसी थी,
हर लक्मे की डिब्बी शर्मा जाती थी
वह गहनों में भी बहनों जैसी लगती थी
हर सौन्दर्य प्रसाधन को उससे क्यों रंज हुआ ?
मैंने तो बस सागर से पानी की परिभाषा ही पूछी थी,
ख़बरें सुन कर हर गागर को क्यों रंज हुआ ?  
कोर्ट कचहरी के बाहर जो दूकाने थी
मैंने उनसे पूछा यह  न्याय कहाँ बिकता है,
मेरी बातें सुन कर सब सदमें में थे,
हर व्यापारी को इस पर फिर क्यों रंज हुआ ?
आत्मा बिखरी है हर घर के दालानों में,
प्यार बिका करता है अब दूकानों में 
भूख तरसती है अब खलियानों में
सेठ मुनाफ़ा गिनता है गोदामों में
मैंने तो बस कह डाला था देश हमारा भी है
यह सुन कर वह नेता था, उसको क्यों रंज हुआ ? 
मैंने तो सूरज से शर्तें पूछी थीं ,
इन बातों से बल्बों को क्यों रंज हुआ ?
उसकी सुन्दरता ही कुछ ऐसी थी,
हर लक्मे की डिब्बी शर्मा जाती थी
वह गहनों में भी बहनों जैसी लगती थी
हर सौन्दर्य प्रसाधन को उससे क्यों रंज हुआ ?"
---- राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

Himalayan Archaeology said...

मैंने तो बस सागर से पानी की परिभाषा ही पूछी थी,
ख़बरें सुन कर हर गागर को क्यों रंज हुआ ?


विस्तृत ..... कई भाव एक साथ समेटे ,कई यथार्थ हिमालय स्वयं में समेटे है ये कविता ...