Tuesday, January 15, 2013

अँधेरे में माचिश की तरह तुम ढाढस बंधाते ही रहे

"अँधेरे में माचिश की तरह तुम ढाढस बंधाते ही रहे ,
मौत को साथ लिए हम गुजर जायेंगे जिन्दगी की तरह .
तुम नयी पीढी के थे परिंदों से उड़े, दरिंदों से जिए
जिन्दगी की शाम फिर पेड़ों पे तुम लौट आये
मैं खडा हूँ तब तलक महफूज़ है यह घोंसला और हौसला तेरा
वक्त में गहरी हैं जड़ें मेरी और खडा हूँ एक बरगद की तरह .
ख्वाब सोने पे आते हैं ,खबर अब तैरती हैं खून में, ख्वाहिशें खैरात की तरह .
ये अजीब लोग हैं, अजीब भीड़ है, आन्दोलनो में भी आये हैं बरात की तरह .
अस्त होते सूर्य का भी तस्करा अब रात में है
बहती हवाओं में यों तो पतंगे उड़ रही हैं
कब बदल देंगी दिशाएँ हवा के हालात में है
ख्वाब सोने पे आते हैं ,खबर अब तैरती हैं खून में, ख्वाहिशें खैरात की तरह .
ये अजीब लोग हैं, अजीब भीड़ है, आन्दोलनो में भी आये हैं बरात की तरह .
अँधेरे में माचिश की तरह तुम ढाढस बंधाते ही रहे ,
मौत को साथ लिए हम गुजर जायेंगे जिन्दगी की तरह .
तुम नयी पीढी के थे परिंदों से उड़े, दरिंदों से जिए
जिन्दगी की शाम फिर पेड़ों पे तुम लौट आये
मैं खडा हूँ तब तलक महफूज़ है यह घोंसला और हौसला तेरा
वक्त में गहरी हैं जड़ें मेरी और खडा हूँ एक बरगद की तरह .
" ----- राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

कितने पड़ते वार, सहन हमने भी सदियाँ की।