Monday, January 7, 2013

समझ सकते हो तो उसे कविता समझ लेना

"शब्द जो जेब में रखे थे कहीं खो गए हैं
जहन में गूंजता है जो
समझ सकते हो तो उसे कविता समझ लेना
चाहता था बोलना
कुछ राज अपना खोलना
पर मेरी जुबाँ पर तह करी तहजीब रखी थी
और उस तहजीब में तुम्हारी मर्यादा भी शामिल थी
अब कोई जूनून नहीं, ... बस खून है मेरा
जो दस्तक दे रहा है दिल पर मेरे
तस्दीक करता है क़ि अभी ज़िंदा हूँ मैं
तुम्हारे स्नेह का सारांश रखा था हिफाजत से जहन में
खो गया ख़्वाबों के साथ
अब हकीकत हांफती है
हौसला कोई नहीं
अब कोई जूनून नहीं, ... बस खून है मेरा
जो दस्तक दे रहा है दिल पर मेरे
तस्दीक करता है क़ि अभी ज़िंदा हूँ मैं
शब्द जो जेब में रखे थे कहीं खो गए हैं
जहन में गूंजता है जो
समझ सकते हो तो उसे कविता समझ लेना ." -----राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

मर्यादा में बिंद्ध रहे, बाहर तो आये ही नहीं।