Wednesday, March 20, 2013

तेरा यह क्रमशः टूटना

"तेरा यह क्रमशः टूटना
मुझे यों तो कभी अच्छा नहीं लगा
पर एक वह दिन भी था जब मुझे अच्छा लगा था
तुम्हारी आशा टूटी
तुम्हारी भाषा टूटी
तुम्हारी हर परिभाषा टूटी
तुम्हारी भावना टूटी
तुम्हारा दिल टूटा
तुम्हारा सपना टूटा
और तुम किश्तों में टूट गए
अन्त में तुम्हारा मौन टूटा
और उस दिन तक स्थापित सच टूट गया
तुम्हारे शब्दों में नया सच उगा
तेरा यह क्रमशः टूटना
मुझे यों तो कभी अच्छा नहीं लगा
पर एक वह दिन भी था जब मुझे अच्छा लगा था
तब तक तो तू टूट चुका था किश्तों में
तब तक तो तू टूट चुका था रिश्तों में
टूट चुके आदमी का जब मौन टूटता है
तो टूटता है किसी अटूट समझे जाने वाले बाँध की तरह
और उस बाँध के किनारे की बस्तियां बह जाती है सच के सैलाब में
तेरा यह क्रमशः टूटना
मुझे यों तो कभी अच्छा नहीं लगा
पर एक वह दिन भी था जब मुझे अच्छा लगा था ."
----राजीव चतुर्वेदी

2 comments:

Unknown said...

टूट चुके आदमी का जब मौन टूटता है
तो टूटता है किसी अटूट समझे जाने वाले बाँध की तरह
बहुत खूबसूरत! कविता अपने साथ पाठक को आगे लेकर चलती है। बधाई स्वीकारें!

Saras said...

टूट चुके आदमी का जब मौन टूटता है
तो टूटता है किसी अटूट समझे जाने वाले बाँध की तरह
और उस बाँध के किनारे की बस्तियां बह जाती है सच के सैलाब में.......यह पंक्तियाँ कितनी सच्ची हैं ....!