Thursday, April 4, 2013

परिदृश्यों के बीच गुजरती एक परी सी शब्दों की ---वह कविता है

"जो शब्दों से लिखी जाती है वह दरअसल कविता नहीं होती कविता जैसी एक चीज होती है ...कविता महसूस की जाने वाली एक अनुभूति है ...बेटी को गौर से देखो कविता दिखेगी ...बहन को गौर से देखो कविता लगेगी ...माँ को गौर से देखो कविता महसूस होगी ...एक मुजस्सम सी दीर्घायु कविता ...यों तो प्रेमिका या पत्नी भी कविता जैसी कोई चीज होती है कविता का चुलबुला सा बुलबुला जिसमें दिखता है इन्द्रधनुष पर फूट जाता है ...कविता स्त्रेण्य अभिव्यक्ति है और उसके तत्व आत्मा, भावना,कल्पना,करुणा भी स्त्रेण्य अभिव्यक्ति है."
                                                                                                                                                           ----राजीव चतुर्वेदी


"सुबोध और अबोध के सौन्दर्यबोध के बीच
कविता लफंगों की बस्ती से गुजरती सहमी लडकी सी
साहित्यिक सड़क पर चल रही है
कुछ के लिए श्रृंगार है
कुछ के लिए प्रतिकार है
कुछ के लिए अंगार है
कुछ के लिए प्यार का इजहार है
कुछ के लिए साहित्य की मंडी या ये बाजार है
कुछ शब्द अभागन से
कुछ शब्द सुहागन से
कुछ सहमे से सपने
कुछ बिछड़े से अपने
कुछ दावानल से दया मांगते देवदार के बृक्ष काँखते कविता सा कुछ
कुछ की गुडिया
कुछ की चिड़िया
कुछ नदियाँ कलकल बहती सी
कुछ सदियाँ पलपल गुजर रहीं
वह हवा ...हवा में तितली सी इठलाती सी वह याद तुम्हारी
वह तुलसी का पौधा ...पौधे की पूजा करती माताएं
वह गोधूली में घर आती वह गाय रंभाती सी
वह बहनों का अंदाज़ निराला सा
वह भाभी का तिर्यक सा मुस्काना
वह दादी की भजनों में भींगी बेवस कराह
वह बाबा का प्यार में डांट रहा खूसट चेहरा
कविता में अब लुप्तप्राय सी माँ बहनों और याद पिता की
बेटी पर तो इक्का दुक्का दिखती हैं पर बेटों पर प्रायः नहीं दिखी कविता
कुछ काँटों से चुभते हैं
कुछ प्रश्न यहाँ हिलते हैं पत्तों से
कुछ पतझड़ में सूखे पेड़ यहाँ रोमांचित से
कुछ मुरझाये पौधे गमलों में सिंचित से
वह गौरैया के झुण्ड गिद्ध को देख रहे हैं चिंतित से
इन परिदृश्यों के बीच गुजरती एक परी सी शब्दों की
---वह कविता है .
" ----राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच में, किनारों के कितने ख़तरों से बचती बचाती चलती है कविता।