Saturday, March 22, 2014

इश्क की इमारत तेरे जुल्म की इबारत भी है



(सन्दर्भ -- ताज महल बनाने वाले कारीगर के हाथ ताज महल बनवाने बाले शाहजहाँ ने कटवा दिए थे ताकि वह दुबारा ऐसी कोई इमारत न बनवा सके )

"मैं दस्तकार था तो उसने हाथ कटवा लिए मेरे दोनों ,
मैंने ताज महल बनाया था यह गुनाह था मेरा
वो ताज महल उसके इश
्क की इमारत है
वो ताज महल मेरी हक़तलफी की इबारत है
मेरे हाथ कट गए थे मैं दुआ को उठाता तो उठता कैसे ?
खुदा ने खुद कभी मुझको देखा ही नहीं
खुदा खुदगर्ज था रहमत की जहमत उठाता तो उठाता कैसे ?
मेरी फ़रियाद उसके फसानो में फंसी थी बेवश
इश्क की इमारत तेरे जुल्म की इबारत भी है
गुजरते लोगों ने इस गुजारिश से कभी देखा ही नहीं
ताज तुझपे नाज़ करती हो तो मुमताज़ करे
मेरी बीबी की मायूस निगाहों की मोहब्बत को समझ
ये खुदा !!
किसी शहंशाह के इश्क के उनवान समझ तो कारीगर की ग़ुरबत भी समझ
मेरे हाथ कट गए थे मैं दुआ को उठाता तो उठता कैसे ?
खुदा ने खुद कभी मुझको देखा ही नहीं
मैं दस्तकार था तो उसने हाथ कटवा लिए मेरे दोनों ,
मैंने ताज महल बनाया था यह गुनाह था मेरा
." ----- राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सौन्दर्य के पार्श्व में निर्दयता का ताण्डव।