Saturday, April 26, 2014

सुना है प्यार तो अभिशिप्त होता है स्थिर ही रहने को

"तू चिर यौवना होगी तो बनी रह
मैं चिरंजीव नहीं
उम्र के पहले में बूढा होना चाहता हूँ
राग अनुराग बीतराग की बस्ती से होकर गुजरना चाहता हूँ
यात्रा पूरी जो करनी है मुझे
यह नदी, यह पहाड़, यह पेड़, यह झरने, सूर्य का संताप चिंतित सा
थोड़ी चांदनी , शोख सी बहती हवाएँ,
राह की चहकी चिड़िया और बहकी सी फिजायें
मेरे सफ़र के परिदृश्य हैं तेरी तरह
फिर प्रश्न कैसा ?
जिन्दगी के पूरे सफ़र को जल्द पूरा करना है मुझे
और तुम परिदृश्य हो
परिदृश्य से प्यार हो सकता है, पर साथ हो सकता नहीं
मुझे सफ़र करना है रुक नहीं सकता
चला जाता हूँ मैं
तुम्हारे राग की बस्ती से समय की आग की बस्ती में
कह देना --
जो गुजरा है
संगत और दिवंगत की दूरियों के दरमियान
वह दरिया था एक दर्शन की तरह बहता हुआ
और तुम दरिया के किनारे चट्टान से ठहरे हुए थे प्यार बन कर
तुम बह नहीं सकते समय के साथ
सुना है प्यार तो अभिशिप्त होता है स्थिर ही रहने को
तुम्हारा स्नेह स्थिर है ...तुम्हारी देह स्थिर है ...तुम्हारा नेह स्थिर है
चेतना चिंतित सी रहती है यह सुन-सुन कर ."
---- राजीव चतुर्वेदी