Sunday, June 1, 2014

स्नेह के ये सारे शब्द अपने पास रख लो

"पेड़ बादल घटाएं
गुफ्तगू सी करती यह बहती हवाएं
चाँद तारे और सूरज
जहन में झांकती सी सूरत कई
आत्मा की तलहटी में यादें तेरी
छूटती है तो छटपटाहट होती ही है
इस सफ़र में हमसफ़र किसको कहूं
रस्ते में छूटते हैं रिश्ते सभी
मैं भी चलता गया
तुम भी चलते बने

यह सफ़र है और तुम परिदृश्य हो केवल
जिस्म मेरा था, जज्वात मेरे थे,
मरा भी मैं ही था हर बार रिश्तों में
मरा भी मैं ही था हर बार किश्तों में
स्नेह के ये सारे शब्द अपने पास रख लो
मुझे मरना ही होगा एक दिन अपने अकेले में ."
----- राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत बढ़िया । परिकल्पना के माध्यम से आपको पढने का मौका मिला ।