Wednesday, January 14, 2015

मैं माचिश हूँ मेरे मित्र

"मैं माचिश हूँ मेरे मित्र
तुम अगर ज्वलनशील होगे
तो हम मिल कर दहकेंगे
तुम अगर अगरबत्ती होगे
तो हम मिल कर महकेंगे

तुम अगर पानी होगे
तो तुमसे मिल कर मैं बुझ जाऊंगा
मुझे रगड़ो वक्त के शिलालेखों पर
मैं जलना चाहता हूँ
यह हो सकता है कि
तुम्हारे स्पर्श से कोई संगीत निकले
पर मैं तुम्हें छूना नहीं चाहता
मैं जलना चाहता हूँ अपनी आग में
आने वाली पीढ़ियों के उजाले के लिए
अपनी देह पर स्पर्श का संगीत सुनते
शायद तुम सोना चाहते हो
मैं दहकता हूँ
महकता हूँ
बहकता हूँ
पर आग लगाता हूँ
लोरी नहीं गाता .
" ----- राजीव चतुर्वेदी

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