Wednesday, July 15, 2015

उस चाय के प्याले में ...

" उस चाय के प्याले में शामिल थी
मुस्कराहट के लिबास में शाम की उदासी
डूबते सूरज की शेष बची आश
एक गुमशुदा सा अहसास ...हमारे आस पास ...बेहद ख़ास
धीरे से दबे पाँव आ कर हमारे बीच बैठा संकोची सा चंदा
चाय के कप से उठती रिश्तों की ऊष्मा की भाप
थोड़ी आशा, थोडा प्राश्चित, थोड़ी उदासी,
कुछ शेष बचे सपने

कुछ अवशेष से अपने
और एक लावारिस सा अहसास ...बेवजह पर बेहद ख़ास
उस कप में बहुत कुछ था जो रिश्तों में पी लिया हमने
उस कप में बहुत कुछ था जो रिश्तों में जी लिया हमने
उस चाय के प्याले में जो खालीपन है वह अपना है
जो भाप बन कर उड़ गया वह सपना है
चाय का खाली प्याला अब रिश्ते की तरह ठंडा है
छलक जाते हैं जो अहसास वह धब्बे से दिखते हैं
उस कप में बहुत कुछ था जो रिश्तों में पी लिया हमने
उस कप में बहुत कुछ था जो रिश्तों में जी लिया हमने .
"
---- राजीव चतुर्वेदी

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