"मुसलमान गऊ मांस न खाएं पर गाय क्या खाये यह हिन्दू बताएं ?... क्या "गाय
क्या खाये" इसकी कोई धार्मिक सामाजिक व्यवस्था है ?.... सुपोषित गायें गऊ
वंश में अल्पसंख्यक हैं और कुपोषित बहुसंख्यक । जम्मू कश्मीर में या अन्य
किसी मुस्लिम बहुल इलाके में अगर हिन्दूओं का कोई वर्ग सुअर का मांस खाये
तो मुसलामानों को कैसा लगेगा ?...क्या इसे मुसलमान बर्दाश्त कर सकेंगे ?...
तो फिर अमन की कोशिश में मुसलमान क्या मात्र इतना भी नहीं कर सकते कि गऊ
मांस न खाएं ? यह अमन और सहअस्तित्व की सार्थक पहल होगी । क्या मुसलमान यह
करेंगे ?... अगर "हाँ" तो सहअस्तित्व की संभावना है और अगर "नहीं " तो
सहअस्तित्व अकेले हिंदुओं की ही राष्ट्रीय जिम्मेदारी नहीं । याद रहे;
अघुलनशील अस्मिता राष्ट्र की एकता में बाधा है और गाय तथा सूअर की चर्बी पर
1857 की क्रान्ति ही नहीं हुयी थी 2017 की भी क्रान्ति होगी ।"
---- राजीव चतुर्वेदी
---- राजीव चतुर्वेदी
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